शीर्षासन कैसे करते है ? वीर्यरक्षा में सर्वोत्तम आसन – शीर्षासन की विधि

सर्वप्रथम शीर्षासन के बारे में सभी को जान लेना चाहिए जो वीर्यरक्षा में सर्वोत्तम है। शीर्षासन को कपालासन, Shirshasana, वृक्षासन भी कहते हैं। इसके करने की विधि इस प्रकार है

शीर्षासन कैसे करते हैं? शीर्षासन की विधि

भूमि पर आसन बिछाकर उस पर कपड़े की गोल गद्दी बना कर रखें, उस पर सिर रख, दोनों हाथों की अंगुलियों को परस्पर मिला, सिर के दोनों ओर दृढ़तापूर्वक रखें, और शरीर को शनैः शनैः ऊपर को उठाते हुए सिर के बल खड़े हो जावें। मस्तिष्क और सिर के बीच का भाग अर्थात् माथा ही वस्त्र पर रखना चाहिए। शरीर नितान्त सीधा रहे, पांवों की उंगलियों ऊपर को रहें, नेत्र खोले रहें, घुटने भी ढीले रहे, श्वास-प्रश्वास की क्रिया पूर्ववत चलती रहे। यही शीर्षासन करने की विधि है। 

Shirshasana करने के पश्चात् कुछ काल तक सीधा खड़ा रहना चाहिए। कुछ आसनों के अभ्यासियों का ऐसा मत है कि जितने समय तक शीर्षासन करें उतने ही समय तक सीधे खड़े रहें तो विशेष लाभ होता है। यदि खडे रहने के लिए समय कम हो तो खड़े होकर करने के आसन तथा व्यायाम कर लेने चाहिये। शीर्षासन के पश्चात् शवासन भी किया जा सकता है। तत्पश्चात् खड़े होकर सारे शरीर को हाथों से रगड़कर मलना चाहिये। 

शीर्षासन के फायदे बालों के लिए

प्रारम्भ में किसी दूसरे व्यक्ति अथवा भित्ति का आश्रय ले लेना चाहिये, क्योंकि प्रारम्भ में अभ्यास के बिना गिरकर चोट लगने का भय रहता है। अभ्यास होने के पश्चात् आश्रय लेना छोड़ दें।

शीर्षासन के अनेक भेद 

शीर्षासन का अच्छा अभ्यास होने पर इसके अनेक भेद कर सकते हैं। यथा-शीर्षासन करते हुए ही ऊपर पद्मासन लगाना, एक पांव नीचे करना, दोनों पांव नीचे करना, पांव को आगे पीछे तथा पार्श्व में घुमाना, सिर को ऊपर उठाकर केवल हाथों के बल ही खड़े रहना इत्यादि ।

Shirshasana के पर्याप्त अभ्यास के पश्चात् यह भी सम्भव हो जाता है कि हाथों को सिर से पृथक कर केवल शिर के ही बल पृथ्वी पर खड़ा रहे। यह बहुत कठिन है, क्योंकि सम्पूर्ण शरीर का भार ग्रीवा पर ही पड़ता है, किन्तु अभ्यास होने पर सुखपूर्वक कर सकते हैं।

शीर्षासन करने का समय

Shirshasana प्रारम्भ में अधिक नहीं करना चाहिए। केवल दस-पन्द्रह सेकेण्ड से प्रारम्भ कर प्रथम सप्ताह में पांच मिनट का अभ्यास करें। तत्पश्चात् प्रति सप्ताह एक या दो मिनट बढ़ाकर आध घण्टे तक अभ्यास कर लेना चाहिये। जब आध घण्टा शीर्षासन करने का अभ्यास हो जाता है तब स्वप्नदोष, प्रमेह, धातुक्षय आदि वीर्यसम्बन्धी समस्त विकार शनैः शनैः समूल नष्ट हो जाते हैं और शरीर स्वस्थ एवं कान्तिमय बन जाता है। किन्तु आध घण्टा शीर्षासन करनेवाले को घी, दूध, मक्खन, बादाम आदि पौष्टिक आहार अवश्य करना चाहिये। जिनको पौष्टिक भोजन पर्याप्त मात्रा में सुलभ होवे, आध घण्टे से अधिक अभ्यास जितना चाहें उतना कर सकते हैं

शीर्षासन करने का समय अपने बल और भोजन के अनुसार हो न्यूनाधिक करना चाहिये, अन्यथा पौष्टिक आहार की न्यूनता में अधिक समय तक शीर्षासन करने से मस्तिष्क में शुष्कता आ जाती है।

शीर्षासन करने के लाभ फायदे 

Shirshasana गुणों की दृष्टि से सब आसनों में श्रेष्ठ तथा ब्रह्मचर्य का प्राण है। जिस भान्ति प्राणों के बिना जीना असम्भव है उसी भांति बिना शीर्षासन ब्रह्मचर्य की रक्षा करना तथा ऊर्ध्वरेता बनना असम्भव नहीं तो अति कठिन अवश्य है, 

विशेषत: आधुनिक वातावरण में। 

अतः ब्रह्मचर्य प्रेमियों को शीर्षासन अवश्य ही करना चाहिए। इस आसन को ७ वर्ष के बालक बालिकायें तथा सौ वर्ष तक के स्त्री-पुरुष सभी कर सकते हैं ।

कुछ लोगों का विचार है कि शीर्षासन करने से बुद्धि तथा नेत्रदृष्टी मन्द हो जाती है, अत: इसे न करना चाहिए। किन्तु यह विचार अज्ञान अभाव के ही कारण है। शीर्षासन करने से बुद्धि तथा नेत्र दृष्टि दोनों ही तीव्र होते हैं, यह अनुभव है।

शीर्षासन करते समय रक्त प्रवाह शुक्राशय की ओर से मस्तिष्क की ओर हो जाता है, जिससे मनुष्य ऊर्ध्व रेता बनता है और वीर्य की ऊर्ध्वगति होने से स्वप्नदोष, धातुक्षय, प्रमेह आदि वीर्य-विकार नहीं होते। 

प्राचीन ऋषियों द्वारा आविष्कृत ऊर्ध्व रेता बनने की यह विशेष विधि है, इसके श्रद्धापूर्वक सतत अभ्यास से मनुष्य अवश्यमेव ऊर्ध्व रेता हो जाता है । 

शीर्षासन के फायदे बालों के लिए

यात्रा करने से अथवा अन्य किसी कठोर शारीरिक परिश्रम से जब शरीर थक जाता है तब थोड़ी देर ठहरकर शीर्षासन करने से थकावट दूर होकर पुनः चैतन्य एवं नवीन शक्ति का संचार होता है। अनुभव करके देखलें। मस्तिष्क का कार्य करने से जब मनुष्य थक जाता है तब शीर्षासन करने से मस्तिष्क की थकावट दूर होती है, रक्त का प्रवाह मस्तिष्क की ओर होने से ज्ञानतन्तुओं को जीवनशक्ति मिलती है, स्मरणशक्ति तीव्र होती है, मेधा बुद्धि और नेत्र दृष्टि बढ़ती है, सफेद बाल काले हो जाते हैं, सम्पूर्ण मुखमण्डल कान्ति मय बन जाता है।

यदि शीर्षासन करते समय आँखों की पुतली घुमाई जाये तथा टकटकी लगाकर किसी एक स्थान पर दृष्टि स्थिर की जाये तो अधिक लाभ होता है। वृद्धावस्था में भी ऐनक लगाने के की आवश्यकता नहीं पड़ती। जो एनक लगने के अभ्यासी हैं वे भी शीर्षासन के अभ्यास से उपनेत्र छोड़ सकते हैं,

किन्तु गाय का दूध और घी यथोचित मात्रा में सेवन अवश्य करना चाहिए। 

हृदय सर्वदा रक्तशुदि का कार्य करता रहता है, उसको किसी भी समय विश्राम नहीं मिलता, परन्तु शीर्षासन करते समय रक्त प्रवाह स्वयमेव हृदय की ओर हो जाता है, जिससे थोड़ी शक्ति से सम्पूर्ण शरीर के रक्त को शुद्ध कर देता है, हृदय को कछ विश्राम मिलता है जिससे हृदय की शक्ति बढ़ती है मनुष्य दीर्घायु होता है तथा रक्त के शुद्ध होने से फोड़े फुन्सी, दाद कण्ड [खुजली] कुष्ठ [कोड], पामा पीनस आदि रक्तविकार जन्य चर्म रोग कभी पास नहीं फटकते। 

प्रायः देखा जाता है कि बहुत से मनुष्यों की ग्रीवा पतली होती है और सिर बहुत बड़ा, जिससे शरीर के कुरूप दिखाई देता है। इसके अतिरिक्त ग्रीवा के निर्बल होने से किसी भारवान पदार्थ को भी सिर पर नहीं संभाल सकते तथा कंठ के दुर्बल होने से स्वास, कास, स्वर विकृति आदि विविध विकार उपस्थित हो जाते है क्योंकि समस्त शरीर की प्रधान नाड़ियों का कण्ठ से सम्बन्ध है। शीर्षासन करने से उपयुक्त रोग नहीं होते। 

पेट की आंतों का बोझ सदा नीचे की ओर रहने से कई मनुष्यों का पेट बाहर निकल जाता है। किन्तु शीर्षासन करने से यह भी ठीक हो जाता है। बढा हुआ मेद [चर्बी] भी कम हो जाता है और शरीर सुगठित और सुडौल बन जाता है। शीर्षासन करने से पाचन शक्ति तीव्र होती है जिससे भोजन पचकर शरीर का अंग बन जाता है ग्रौर मल यथासमय बाहर हो जाता है। 

अग्निमांद्य, अजीर्ण कोष्ठबद्धता, बहुमूत्र प्रभृति उदर रोग नहीं होते । बढ़ी हुई प्लीहा (तिल्ली) पर यकृत् (जिगर) ठीक हो जाते हैं।

 नवीन अर्श-रोग (बवासीर) शीर्षासन करने से अवश्यमेव समूल नष्ट हो जाता है, पुराने अर्श रोग में लाभदायक है तथा निरन्तर श्रद्धापूर्वक पर्याप्त समय तक अभ्यास करने से उससे भी मुक्त देता है। बधिरता ( कम सुनना), कान बहना, पाण्डु, संग्रहणी, सूजन, प्रतिश्याय (जुकाम) इत्यादि रोगों में भी शीर्षासन करने से लाभ होता है। सभी रोगों की उत्पत्ति का कारण उदर विकृति ही है, पेट के यथोचित भोजन-पाचन श्रदि कार्य न करने से मनुष्य रोग-ग्रस्त हो जाता है और शीर्षासन करने से पेट निरोग रहता है, पाचन क्रिया ठीक करता है। अतः प्रायः सभी रोगों में शीर्षासन हितकर है।

शीर्षासन की हानि शीर्षासन का निषेध 

कर्ण-पीड़ा वा कान से मवाद निकलता हो तथा नेत्र-पीड़ा में शीर्षासन नहीं करना चाहिये, क्योंकि रक्त के कान एवं नेत्रों में जाने से पीड़ा अधिक होती है। रक्तचाप (ब्लड प्रेसर) में शीर्षासन न करें। करना ही हो तो सावधानी के साथ करें। स्त्रियां मासिक धर्म के समय एक सप्ताह तक, गर्भावस्था में ६ मास के पश्चात् और प्रसूति काल में दो माह तक शीर्षासन न करें। 

शीर्षासन से नेत्र ज्योति-वृद्धि (श्री आचार्य भगवान देव जी का अनुभव)

वैसे तो वीर्य रक्षा तथा आँखों के लिये, सब प्रकार के व्यायाम से लाभ पहुंचता है, परन्तु Shirshasana, वृक्षासन, मयूरचाल, सर्वांगासन तो वीर्यरक्षा में परम सहायक

आंखों के लिए सब प्रकार के व्यायामों में मुख्य हैं। शीर्षासन, वृक्षासन, मयूरचाल, सर्वांगासन जो एक प्रकार से Shirshasana के ही भेद तथा समान गुण वाले हैं, वीर्यरक्षा में परम सहायक तथा प्राणियों के लिये गुणकारक हैं—यह स्वयं मेरे जीवन का अनुभव है (स्वामी ओमानंद जी)। जब मैं दशम श्रेणी में पढ़ता था, डाक्टर ने मेरी आँखों में रोग बतलाया। इस रोग में दूर की वस्तु स्पष्ट नहीं दीखती और पुस्तक पढ़ने के लिए विद्यार्थी को पुस्तक पास लानी पड़ती है । यह रोग आजकल प्रायः बहुत से विद्यार्थियों को होता है । डॉक्टर ने साथ-साथ यह सम्मति भी दी कि आप आंखों पर चश्मे लगावें, नहीं तो आंखें खराब हो जाएगी। मुझे डॉक्टर की इस सम्मति पर हंसी आई। उस समय मुझे चश्मे से घृणा थी । 

ईश्वर कृपा से और महर्षि दयानंद की दया से मैं आर्यसमाज की शरण में आचुका था। इसी कारण ब्रह्मचर्य पालन की लगन भी पहले से ही लग चुकी थी। इसी धुन में मैं नियमपूर्वक Shirshasana आदि व्यायाम करता था। इसका फल धीरे-धीरे मिलने लगा, चक्षु क्या किसी अंग में भी किसी प्रकार का विकार न रहा। महर्षि की कृपा से आज २४ वर्ष के पीछे मैं देखता हूं कि मेरी आंखों की. ज्योति दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जाती है और डॉक्टर की चश्मे वाली बात याद करके मुझे आज भी हंसी आती है। 

यदि लोग चक्षुरक्षा के लिये ब्रह्मचर्य पालन, शीर्षासन आदि व्यायाम, साधनों का अवलम्बन करें तो कितने ही लोगों के चश्मे उतर जायें । निष्कर्ष यह है कि विद्यार्थी अति मस्तिष्क से काम करनेवाले लोगों को Shirshasana आदि व्यायाम से जहां अनेक लाभ होते हैं वहां उनकी आंखों के रोग और विकास भी दूर होते हैं, अंतः चक्षु प्रेमियों को प्रतिदिन शीर्षासन आदि व्यायाम अवश्य करने चाहिये।

शीर्षासन पर अनेक अनुभव (श्री पं० देवशर्मा जी पू० प्राचार्य गुरुकुल कांगड़ी) 

मैंने दो-ढाई वर्ष तक Shirshasana का अभ्यास किया है। इस लिए यह समझकर कि मेरा अनुभव भी पाठकों को रुचिकर और कुछ सेवाकारक हो सकेगा, इस विषय पर निम्न पंक्तियां लिखने लगा हूँ।

(१) भूख पर – Shirshasana करने से भूख खुब बढी । अथवा यह कहना अधिक ठीक होगा कि Shirshasana से शरीर में किसी वस्तु की आवश्यकता अनुभव होती थी, जो कि हल्के और स्निग्ध भोजन खा लेने से भी मालूम होती थी। यह सत्य है कि शीर्षसन करने वाले को घी दूध आदि का विशेष सेवन करना चाहिए, नहीं तो पेट अग्नि से जलने लगता है। मेरी समझ में शीर्षासन करने वाले को नित्य नियमित रूप से अवश्य भोजन करते रहना चाहिये।

(२) वीर्य रक्षा पर – Shirshasana से यद्यपि पूर्ण वीर्यरक्षा तो मुझे नहीं प्राप्त हुई, परन्तु स्वप्नदोष की मात्रा और संख्या अवश्य कम हो गई, और यह तो सर्वथा निश्चय होगया कि इस क्रिया से पूर्ण वीर्य रक्षा कालान्तर में हो जायेगी। 

(३) नेत्रों पर- कुछ दिन Shirshasana करने से नेत्र खुलते से प्रतीत होते थे।

(४) निद्रा पर- शीर्षासन करने के बाद ही शरीर में ऐसा आसाराम और शान्ति अनुभव होती थी कि प्रायः मुझे इसके उपरान्त थोड़ी सी निद्रा आजादी थी।

(५) सिर दर्द- मैं कुछ आग्रही स्वभाव का हूं इसलिए चाहे कुछ भी क्यों न हो जाये, मैं Shirshasana दोनों समय कर ही डालता था। तीन चार बार ऐसा हुआ कि सायंकाल के समय मेरे सिर में दर्द हो रहा था, परन्तु फिर भी मैंने Shirshasana किया ही।

प्रत्येक वार इसका परिणाम यह हुआ कि एक बार तो जोर से सिर में दर्द बढ़ा और डकार आई और फिर एकदम दर्द अच्छा होगया। परन्तु मैं लोगों को सलाह देने को तैय्यार नहीं कि जब आप के सिर में दर्द हो तब आप शीर्षासन करके खड़े हो जायें । बल्कि यह कह सकता हूं कि Shirshasana के अभ्यास से सिर दर्द पैदा होना बन्द हो जायेगा।

(६) आगन्तुक रोगों पर – मेरा यह निश्चित अनुभव होगया था कि जब कभी मुझे कुछ रोग होने का भय होता था तब वह मेरे शीर्षासन के समय से पहले ही मुझे दबा सकता था, इसके पश्चात् नहीं।

कई बार जब चारों ओर बिमारी फैली हुई थी, मुझे भी कुछ ज्वर होने की आशंका हुई, परन्तु Shirshasana करने के उपरान्त शरीर विल्कुल निर्व्याधि हो जाता था। कुछ ज्वर या हरारत, कान में दर्द, जुकाम, खांसी की ठसक ग्रादि प्रादि पैदा होकर भी शीर्षासन के बाद स्वयमेव उड़ जाते थे।

कभी छाती में सर्दी लग गई है, ऐसा भय हो जाता था, परन्तु Shirshasana करने के पश्चात् सारा शरीर एक समान उष्ण होकर सर्दी का नाम भी न रहता था। मेरा विचार है कि यदि किसी को निमोनिया होने का भय हो (बल्कि प्रारम्भिक अवस्था में हो भी गया हो) तो यदि उससे Shirshasana कराया जा सके तो वह रोग के आक्रमण से मुक्त हो सकता है।

(७) कब्ज पर – मैं कोष्ठबद्धता के कारण कुम्भक के बल ही मल त्याग किया करता था परन्तु अब एक वर्ष से मुझे बिना कुम्भक किये ही स्वयमेव नित्य शौच हो जाता है। इस उन्नति में अन्य आसनों के साथ शीर्षासन का भी प्रभाव है शीर्षासन का विशेष लाभ मुझे यह अनुभव होता है कि एक तो पेट में वायु नहीं रह सकती और दूसरे शौच बंधकर होता है। 

(८) सर्वाङ्ग पर – सबसे पहला अनुभव शीर्षासन से यह होता कि सम्पूर्ण शरीर हल्का और पतला हो जाता है। सारे शरीर पर एक प्रकार की कान्ति आजाती है। सम्पूर्ण त्वचा बिना तैलादि मले ही स्निग्ध रहती है। 

(९) प्राण पर- Shirshasana से प्राण की गति स्थिर और शान्त होने लगती । स्वयमेव प्राणायाम होने लगता है। इस समय प्राणायाम करने की चेष्टा कदापि न करनी चाहिये ।

Shirshasana के पश्चात् अवश्य स्वेच्छापूर्वक प्राणायाम करना उचित है। मुझे इसका अनुभव इस प्रकार हुआ कि शीर्षासन के बाद प्राणायाम करने से उत्तमता रक्त शुद्ध हो जाती है क्योंकि सम्पूर्ण शरीर का रुधिर पलों को लेकर फेफड़ों में पहुंचाता है। मेरा विचार होता है कि केवल शीर्षासन के तथा उसके साथ और बाद में होनेवाले प्राणायाम से भी अभ्यासी समाधि तक पहुंच सकता है।

कई योगाभ्यासियों के कथन सुनकर मैंने अपना यह मत बनाया है। उनका कहना है कि प्रतिदिन तीन घण्टा कपाली मुद्रा (शीर्षासन) के अभ्यास से षट्चक्रवेध आदि सब कुछ सिद्ध हो जाता है। इसका कारण यही है कि शीर्षासन से प्राण अन्दर खिचने लगता है। योगमार्ग में शीर्षासन का सबसे बडा लाभ यही है। प्राण का आयाम होने से जैसे कि योगग्रन्थों में लिखा है इस आसन से आयु वृद्धि होती है और काल पर विजय पाई जाती है। “वस्तु: शीर्षासन आसनों में शीर्ष स्थानीय है।”

दोस्तों आशा करता हु ये लेख आपको अच्छा ज्ञानवर्धक लगा होगा मेरे पास कुछ पुराणी पुस्तके है उन्ही में से ये लेख लिया गया है उसमे अनुभव की बाते लिखी है तो इसलिए भी ये जानकारी लाभदायक है इसीलिए ये लेख आप सभी के लिए लिखा है , अपने विचार हमें कमेन्ट में जरुर बताएं .

शीर्षासन को आप मेरी वीडियो देख कर भी सिख सकते हो

8 thoughts on “शीर्षासन कैसे करते है ? वीर्यरक्षा में सर्वोत्तम आसन – शीर्षासन की विधि”

  1. मैं दो से तीन मिनट तक शीर्षासश कर लेता हूँ धीरे धीरे समय ओर बढाऊगा।

    Reply
    • शीर्षासन पर बोहोत ही लाभदायक जानकारी! पं. देवशर्मा जी का अनुभव कथन पढ़ने से शीर्षासन के प्रति अतिप्रेरणा जागृत हुई है। धन्यवाद।

      Reply
  2. एक दिन में कितनी प्रकार की दण्ड लगानी चाहिए

    Reply
  3. शीर्षासन पर बोहोत ही लाभदायक जानकारी! पं. देवशर्मा जी का अनुभव कथन पढ़ने से शीर्षासन के प्रति अतिप्रेरणा जागृत हुई है। धन्यवाद।

    Reply
  4. अमित भाई जी जय श्री राम जय श्री कृष्ण
    मैं आपके चैनल को निरंतर रूप से देखता हूं और आपके चैनल से मुझे बहुत प्रेरणा मिली है जो मेरे दैनिक जीवन में परिवर्तन लाई है और मैं ब्रह्मचर्य का पालन कर रहा हूं और मैं लगभग 2 महीने से शीर्षासन कर रहा हूं अभी मैं 3 या 4 मिनट तक ही कर पाता हूं और आप से प्रेरणा पाकर इसको मैं समय को और बढ़ा लूंगा
    अतः है भाई जी आप से निवेदन है आप ऐसे ही निरंतर हमें प्ररेणा देते रहें धन्यवाद

    Reply
  5. अमित भाई जी जय श्री राम चैनल को निरंतर देखता हूं जिससे मुझे बहुत प्रेरणा मिली है और मैंने उसको अपने जीवन में लागू किया है जिससे मेरे जीवन में परिवर्तन आया है अतः आपसे निवेदन है कि आप ऐसे ही हमें प्रेरित करते रहें धन्यवाद

    Reply

Leave a Comment