चक्षु स्नान उष:पान और शौच आदि ब्रह्मचर्य के साधन पार्ट 2 Free Pdf Download


प्रातः काल उठकर ईश्वर चिंतन के पश्चात चक्षु:स्नान करना चाहिए जिस की विधि निम्न प्रकार से हैं।

उषा पान शुद्ध जल जो ताजा और वस्त्र से छना हुआ हो लेकर इससे मुंह को इतना भर लो कि उसमें और जल ना आ सके अर्थात पूरा भर ले इस जल को मुख में ही रखना है साथ ही दूसरे शुद्ध जल से दोनों आंखों में बार-बार छींटे दो जिससे रात्रि में शयन समय जो मल अथवा उष्णता आंखों में आ जाती है वह सर्वथा दूर हो जाए इस प्रकार इस क्रिया से अंदर और बाहर दोनों ओर से चक्षु इंद्रिय को ठंडक पहुंचती है निर्थक मल और उष्णता दूर होकर दृष्टि बढ़ती है इस क्रिया को प्रतिदिन करना चाहिए।

यह क्रिया आंखों की ज्योति के लिए अत्यंत लाभदायक है इसको प्रतिदिन श्रद्धा पूर्वक करने से नेत्रों के सब रोग दूर होकर वृद्धावस्था तक आंखों की ज्योति बनी रहती है।

२ उषा पान

इसके पश्चात उष:पान ( उषा पान ) करें प्रातः काल 4:00 बजे के पश्चात जो जल शौच (मल, मूत्र त्याग) से पूर्व पिया जाता है उसे उष:पान कहते हैं।

उषा पान से पूर्व भली-भांति कुल्ली करके मुख नासिका आदि को साफ करना आवश्यक है पहले दांतो को अंगुली से भलीभांति रगड़ कर दो तीन बार कुल्ला करें फिर अंगूठे या उंगली से रगड़ कर जीभ का तथा गले में नीचे ऊपर तथा दाएं बाएं लगा हुआ कफ आदि मल भली-भांति साफ कर डालें। नासिका के दोनों क्षेत्रों को भी जल से शुद्ध कर ले यदि नासिका और मुंह को भली-भांति शुद्ध किए बिना उषा पान (जलपान) किया जाएगा तो रात्रि में शयन काल में हमारे उदर से जो मल मुख के द्वारा बाहर निकलने के लिए आता है वह जल के साथ पुनः पेट में पहुंचकर गड़बड़ी करेगा।

उषा पान के प्रकार

उषा पान दो प्रकार से किया जाता है प्रथम नासिका द्वारा दूसरा मुख् द्वारा लाभ दोनों से ही होता है पहले मुख द्वारा ही जल पीने का अभ्यास करना चाहिए शने शनेे नासिका के द्वारा भी जल पीने का प्रयास कर सकते हैं किंतु यदि नासिका से पीना हो तो बाई नासिका से धीरे-धीरे थोड़ा जल अंदर जाने दें इस जल को मुंह से थूक दे इस प्रकार नासिका को शुद्ध करके नासिका से जल पीना चाहिए।

उषा पान नासिका द्वारा जल पीने की विधि इस प्रकार-

गिलास में या किसी जल पात्र में जिसके किनारे पतले हो जल भर सुविधा पूर्वक बैठकर गिलास का किनारा बाय नथुने से लगाकर धीरे धीरे जल अंदर जाने दे कंठ से घुट खींचता जाए जल स्वयं ही भीतर जाने लगेगा जल को श्वास की सहायता से ना खींचे बलपूर्वक यह क्रिया करने से जल का ठस्का लग सकता है आरंभ में कुछ कष्ट होता है किसी के तो आंखों में आंसू भी आ जाते हैं कुछ झनझनाहट सी उत्पन्न होती है और थोड़ा सा जुकाम भी प्रतीत होता है किंतु इससे घबराना नहीं चाहिए पहले दिन एक या दो तोला जल्दी फिर धीरे-धीरे बढ़ाता जाए भावप्रकाश में 24 तोले जल पीना लिखा है किंतु प्रत्येक मनुष्य अपनी प्रकृति के अनुसार न्यून व अधिक कर सकता है किसी किसी को वायु के कारण डकारे बहुत आती है क्योंकि जल के साथ पेट में वायु भी जाती है इससे घबराना नहीं चाहिए बाई नासिका से जल पीने से हानि कोई नहीं होती बाय नथुने का चंद्रशेखर होने से शीतलता और शांति रहती है किसी को नासिका से जल पीने से कष्ट होता है तो मुख ही पीता रहे।

जल पीकर ही मल मूत्रत्याग करें यह सदैव ध्यान रखना चाहिए कि प्रत्येक अवस्था में मल मूत्र त्याग से पूर्व ही उषा पान करना आवश्यक है जल मीठा और शुद्ध होना चाहिए कुए का ताजा जल सदैव अच्छा रहता है उष्ण काल में सांय काल का रखा हुआ शुद्ध जल भी अच्छा रहता है बहुत ठंडा और गर्म पानी हानि करता है जिनको मलबंद (कब्ज) रहता हो वे सांय काल तांबे के पात्र में जल रख दें और प्रातः उसका पान करें।

उषा पान के लाभ

उषा पान के अनेक लाभ आयुर्वेद के ग्रंथों में लिखे हैं धन्वंतरि संहिता में लिखा है

जो मनुष्य सूर्योदय से कुछ पहले 8 अंजलि जल पीता है रोग और बुढ़ापा उसके पास नहीं आते वह सदैव स्वस्थ और युवा रहता है उसकी आयु 100 वर्ष से भी अधिक होती है

इसी प्रकार भावप्रकाश में लिखा है

बवासीर, सूजन, संग्रहणी ज्वर, पेट के रोग, बुढ़ापा, कुष्ठ, मेद रोग अर्थात बहुत मोटा होना, पेशाब का रुकना, रक्तपित्त, आंख, कान, नासिका, सिर, कमर, गले इत्यादि के सब शुल (पीड़ा) तथा वात, पित्त, कफ और फोड़े इत्यादि होने वाले अन्य सभी रोग उषा पान से दूर होते हैं।

इसी प्रकार एक अन्य स्थान पर लिखा है

नासिका द्वारा प्रतिदिन शुद्ध जल की तीन घुट वा अंजलि प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त में पीनी चाहिए क्योंकि इससे झुर्रियां पड़ना, बुढ़ापा, बालों का सफेद होना, पीनस नाक का सड़ना, या नासिका में कीड़े पड़ना आदि नासिका रोग प्रतिष्याय जुकाम, स्वर का बिगड़ना, विरसता, कास व खांसी सूजन आदि रोग नष्ट हो जाते हैं। और बुढ़ापा दूर होकर पुनः युवावस्था प्राप्त होती है आयु की विर्धी अर्थात दीर्घायु की प्राप्ति होती है। चक्षु संबंधी सब रोग दूर होते हैं और नेत्र ज्योति इस प्रकार जलनेति करने से खूब बढ़ती है अतः ब्रह्मचर्य तथा प्रत्येक स्वस्थ स्त्री व पुरुष को प्रतिदिन मुख वा नासिका द्वारा उषा पान का अमृत पान करके अमूल्य लाभ उठाना चाहिए।

३ शौच

जल पीकर पहले लघुशंका(मूत्र त्याग) करें तत्पश्चात खुले जंगल में जाकर मल त्याग करें सोच के लिए ग्राम से जितना भी दूर जाओ उतना ही अच्छा है इसमें मनु जी महाराज का प्रमाण है

मल मूत्र का त्याग, पैर धोना वा जूठन का फेंकना आदि कार्य घर वा निवास स्थान से दूर ही करें।

मनु जी की आज्ञा के अनुसार प्रातः काल उत्तर की ओर और सांय काल दक्षिण की ओर मुख करके शौच के लिए बैठे जैसा कि आगे लिखा है मुख तथा दांतो को बंद रखें बाएं पैर पर दबाव रख कर बैठना अच्छा है इससे सोच खुलकर आता है सोच के समय बल लगाना बहुत ही हानिकारक है बल लगाने से वीर्य नष्ट हो जाता है जो मल स्वयं आजावे वही ठीक है।

यदि सोच ना आए तो

यदि सोच खुलकर नहीं आता और स्थाई मल बंध कबज का रोग रहता है तो जल पीकर शौच जाने से पूर्व पेट के पश्चिमोतान आसन, मयूर आसन, आदि आसन तथा अन्य हल्के व्यायाम करें पेट को खूब हिलाएं फिर शौच जाएं। मार्ग में जाते समय मन में यह दृढ़ निश्चय करें कि मुझे शीघ्र सोच आ रहा है और यदि मैं जल्दी से नहीं चला तो मार्ग में ही मल निकल कर वस्त्र खराब हो जाएंगे मल त्याग के लिए बैठ जाने पर भी इसी प्रकार का ध्यान करें कि सब मल गुदाद्वार के द्वारा बाहर निकल रहा है ऐसा करने से मलमद नहीं होगा ऐसे दृढ़ निश्चय और ध्यान का हमारे शरीर पर बड़ा प्रभाव पड़ता है इसे हंसी समझकर टाल न दे यथार्थ में हम शरीर के स्वामी ना बनकर दास बने हुए हैं इसलिए अनेक कष्ट उठाने पड़ते हैं।

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